स्वदेशी तकनीक से जीता चांद, अब ‘सूर्य नमस्कार’ करेगा भारत, जानें इस नए मिशन की खास बातें

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद अंतरिक्ष विज्ञानियों के हौसले बुलंद हैं और अब उनकी निगाहें सूर्य के अध्ययन के लिए भेजे जाने वाले आदित्य-एल 1 मिशन पर हैं जो मात्र दो सप्ताह के अंदर रवाना होने वाला है। चंद्र मिशन की सबसे बड़ी सफलताओं में एक यह रही है कि इसके लिए भारत ने स्वदेशी तकनीक का प्रयोग किया था, जबकि दूसरी बड़ी उपलब्धि यह रहने वाली है कि इसके दक्षिणी ध्रुव में पानी होने या न होने की पहली बार पुष्टि होगी। हालांकि इस अध्ययन के लिए इसके रोवर को चांद के केवल एक दिन का समय ही मिल पाएगा।

गत लंबे समय से पूरे देश की नजरें चंद्रयान पर लगी थीं जबकि इसी दौरान भारत के दूसरे अत्यंत महत्वपूर्ण सूर्य मिशन की लांचिंग का समय भी आ चुका है और अगले दो सप्ताह के भीतर इसकी भी लांचिंग हो जाएगी। सूर्य का अध्ययन करने वाला भारत का यह पहला मिशन होगा। लगभग पांच साल तक लगातार सूर्य का अध्ययन करेगा। इस अंतरिक्ष यान में सात तरह के वैज्ञानिक पेलोड्स लगाए गए हैं जो सूर्य के अध्ययन में सहायक होंगे।

इन पेलोड्स से सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और उसकी बाहरी परत कोरोना का अध्ययन किया जाएगा। आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक डाॅ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि इस यान को पृथ्वी से करीब 15 लाख किलोमीटर दूर लो अर्थ ऑर्बिट, लियो में स्थापित किया जाएगा। यह जगह बिना किसी बाधा के सूर्य के अध्ययन के लिए उपयुक्त मानी गई है।

ये अध्ययन करेगा आदित्य

भारत का महत्वाकांक्षी सौर मिशन आदित्य एल 1 सौर कोरोना की बनावट और इसके तपने की प्रक्रिया, कोरोना के तापमान, सौर विस्फोट और सौर तूफान के कारण और उत्पत्ति, कोरोना और कोरोनल लूप प्लाज्मा की बनावट, वेग और घनत्व, कोरोना के चुंबकीय क्षेत्र की माप, कोरोनल मास इजेक्शन की उत्पत्ति, विकास और गति, सौर हवाएं और अंतरिक्ष के मौसम को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करेगा।

पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है चांद का एक दिन

यह एक रोचक और महत्वपूर्ण तथ्य है कि चांद का एक दिन पृथ्वी के 14 दिनों के बराबर होता है। चंद्र मिशन की सारी रणनीति इसके अनुसार बनाई गई है। रोवर प्रज्ञान में लगे सौर पैनल सूर्य के प्रकाश से ही ऊर्जा प्राप्त करेंगे और इसका जीवनकाल केवल पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होगा जो चांद के एक दिन के बराबर है। डाॅ. शशि भूषण पांडे ने बताया कि चांद की रात्रि भी पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होगी। इस दौरान रोवर के आसपास का तापमान शून्य से दो सौ डिग्री तक नीचे चला जाएगा। यदि इसके उपकरण इस भीषण ठंड से खराब हो गए तो उसके बाद ये काम नहीं कर पाएगा। अन्यथा 14 दिन बाद फिर सक्रिय हो भी सकता है।

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