उत्‍तराखंड की इस सीट पर 62 वर्ष बाद पहली बार पड़े 50% से अधिक वोट, पढ़ें ऐसे ही कई दिलचस्‍प किस्‍से

अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र में चुने जाने वाले प्रत्याशियों से नाउम्मीदी, भौगोलिक जटिलता, बढ़ते पलायन से कभी भी मतदाताओं ने मतदान को लेकर रुचि नहीं दिखाई। 15वीं लोकसभा तक तो कुल मतदाताओं के आधे मतदाताओं ने भी मतदान नहीं किया। 16वीं व 17वीं लोकसभा के लिए 50 फीसद से कुछ अधिक मतदाताओं ने मतदान किया। अब इस बार भी आयोग मतदाताओं को अधिक से अधिक मतदान के लिए जागरूक करने में जुटा है।

आजादी के दो दशकों तक दुर्गम पहाड़ी अल्मोड़ा लोकसभा में चुनाव को लेकर जागरूकता कम ही थी। वहीं मतदान स्थल तक पहुंचना सबके लिए संभव भी नहीं था। इसलिए वर्ष 1952 से 1971 तक हुए पांच लोकसभा चुनाव में मतदान प्रतिशत 28 प्रतिशत के आसपास रहा। अस्सी के दशक में मजबूत लोकतंत्र के पूरे देश में अभियान चला। आपातकाल के दौर में लोकतांत्रिक मूल्यों व संविधान को बचाने के प्रति लोगों में जागरूकता बड़ी। इसका परिमाण मतदान में भी दिखाई दिया। वर्ष 1971 में मतदान प्रतिशत 28.85 प्रतिशत था। वह 1977 में बढ़कर 43.82 प्रतिशत हो गया।

आने वाले चुनावों में भी मत प्रतिशत इसी के आस-पास रहा। 50 फीसद के आंकड़े को नहीं छू पाए। उत्तराखंड राज्य बनने के बाद उम्मीद थी। अब लोग लोकसभा चुनाव के प्रति भी रुचि दिखाएंगे। लेकिन लोगों की भागीदारी लोकतंत्र के इस महापर्व में नहीं दिखाई दी। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में 52.34 फीसद व वर्ष 2019 के चुनाव में मत प्रतिशत 52.31 प्रतिशत जरूर पहुंचा।

जब केवल 24 प्रतिशत हुआ मतदान

वर्ष 1957 की दूसरी लोकसभा के लिए केवल 24 फीसद मतदाताओं ने मत डाला। जो अब तक हुए चुनावों में सबसे कम मतदान का रिकार्ड है। इस चुनाव में केवल दो प्रत्याशी चुनावी मैदान में थे। कांग्रेस के हरगोविंद पंत व प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के पूर्णानंद खड़े थे। कांग्रेस को 49549 व पीएसपी को 40422 मत मिले। 374895 मतदाताओं में से 89971 मतदाताओं ने मतदान किया था।

पुरुष काम से बाहर तो महिलाओं ने डाला वोट

राज्य बनने के बाद लोगों ने सोचा था कि हालात सुधरेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। राज्य बनने के पांच वर्ष बाद से ही पलायन शुरू हो गया। लोग अपनी आर्थिक हालात को सुधारने को पलायन करने लगे। शुरुवाती दौर में पलायन अस्थाई था। इसलिए 2007 के बाद हुए विधानसभा व लोकसभा चुनावों में महिलाओं का मतदान प्रतिशत पुरुषों से आगे निकल गया। पुरुष नौकरी की तलाश में घर से दूर जाने लगा था। युवा उच्च शिक्षा के लिए जा रहे थे। उन्हें चुनाव से कोई लेना देना नहीं रहा।

जटिल है क्षेत्र का भूगोल

अल्मोड़ा संसदीय क्षेत्र भौगोलिक दृष्टि से बेहद जटिल है। चीन-नेपाल से इसकी सीमाएं लगी हुई है। इसमें चार जिले अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, पिथौरागढ़ आते है। यहां बेहद दुर्गम गांव है। कई गांवों में सड़कें नहीं पहु्ंची। सांसद अपने कार्यकाल में पूरे गांवों का दौरा तक नहीं कर पाते। करीब 30 प्रतिशत गांव ऐसे है जो जिन्होंने अपने सांसद को भी नहीं देखा होगा।

जागरूकता भी सड़कों तक

चुनाव के दौरान लाखों खर्च कर जागरूकता की जाती है। लेकिन यह अभियान मात्र सड़कों तक ही सीमित रहती है। दूरस्थ गांवों में इस अभियान का असर नहीं दिखता। अब धीरे-धीरे जो कुछ जागरूकता हो रही है उसी का असर है कि मतदान केंद्र तक लोग पहुंच रहे हैं। चुनाव आयोग ने मतदान के लिए सुलभ केंद्र भी बनाएं है।

महिला, पुरुष के मतदान मत प्रतिशत का तुलनात्मक चार्ट

  • वर्ष। पुरुष। महिला
  • 2004, 53.43, 44.94
  • 2009, 56.67, 51.71
  • 2014, 61.34, 63.05
  • 2019 58.86, 64.38

अब तक हुआ कुल मतदान प्रतिशत

  • वर्ष प्रतिशत
  • 1952 26.94
  • 1957 24
  • 1962 27.30
  • 1967 29.14
  • 1971 28.85
  • 1977 43.82
  • 1980 39.68
  • 1984 46.51
  • 1989 43.81
  • 1991 40.12
  • 1996 43.38
  • 1998 46.45
  • 1999 41.82
  • 2004 49.63
  • 2009 45.86
  • 2014 52.34
  • 2019 52.31

मजबूरी और अवसर ने पहाड़ से नीचे उतार दिए युवा

गोविंद बिष्ट, हल्द्वानी : कुमाऊं की दो संसदीय सीटों की भौगोलिक परिस्थितियां एक-दूसरे से अलग हैं। एक में नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिले के मतदाता शामिल हैं, जबकि दूसरे में चार जिलों अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर, चंपावत के वोटर पंजीकृत हैं, मगर युवा मतदाताओं का आंकड़ा बिल्कुल अलग है।

पूरी तरह से मैदानी यानी तराई के नाम से पहचाने जाने वाले ऊधम सिंह नगर में युवा मतदाताओं (20-29) की संख्या पर 2,92,762 हैं। इस संख्या को चार पहाड़ी जिले मिलकर भी पूरा नहीं कर सकते। क्योंकि, चंपावत, बागेश्वर, अल्मोड़ा और पिथौरागढ़ में 20-29 आयु वर्ग के 2.60 लाख वोटर ही हैं।

तराई और पहाड़ के बीच के इस बड़े अंतर की वजह मजबूरी और अवसर दोनों ही है। ऊधम सिंह नगर में उद्योगों की भरमार होने के कारण बड़ी संख्या में लोग यहां शिफ्ट हो रहे हैं। इसके उलट पहाड़ पर रोजगार के स्थायी साधन न होने के कारण युवा तराई से लेकर दिल्ली और अन्य बड़े शहरों की दौड़ लगाते हैं। इसके अलावा पर्वतीय क्षेत्रों में खेती पूरी तरह बरसात पर निर्भर है। वहीं, ऊधम सिंह नगर उद्योग संग कृषि के मामले में भी आत्मनिर्भर है।

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। शनिवार को आचार संहिता की घोषणा भी हो गई। वहीं, भाजपा ने इससे पूर्व ही पांचों सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए, जबकि कांग्रेस ने नैनीताल-ऊधम सिंह नगर और हरिद्वार सीट पर अभी तक चेहरा साफ नहीं किया है।

बात मतदाताओं की करें तो ऊधम सिंह नगर में युवाओं संग कुल मतदाताओं की संख्या भी सबसे ज्यादा है। यहां सभी आयु वर्ग के वोटरों को मिलाकर 13.17 लाख मतदाता दर्ज हैं। वहीं, चार पर्वतीय जिलों में आबादी कम होने की वजह मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। स्वास्थ्य सेवाओं की खराब हालत किसी से छुपी नहीं। शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़े संस्थान मैदानी इलाकों में ही है। वहीं शहरीकरण के चलते भी मैदानी क्षेत्रों में बसासत लगातार बढ़ गई है। इस कारण से पहाड़ी जिलों में मतदाताओं की संख्या कम है।

आंकड़े

  • जिला 20-29 आयु वोटर कुल वोटर
  • पिथौरागढ़ 74249 3.72 लाख
  • बागेश्वर 44910 2.16 लाख
  • अल्मोड़ा 96062 5.35 लाख
  • चंपावत 45746 2.05 लाख
  • ऊधम सिंह नगर 292762 13.17 लाख

मैदान पहाड़ में समाया, नैनीताल दूसरे नंबर पर

20-29 आयु वर्ग के मतदाताओं के मामले में नैनीताल जिला दूसरे नंबर पर है। यहां 145772 संख्या है। नैनीताल की भौगोलिक परिस्थिति पहाड़ और मैदान दोनों से जुड़ी है, लेकिन ज्यादा वोटर मैदान में है। क्योंकि, छह में से चार विधानसभा मैदानी क्षेत्र वाली है।

सितारगंज में रिकार्ड बना, सल्ट में आधे वोट नहीं पड़े

लोकसभा चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग स्वीप टीम के माध्यम से घर-घर पहुंचने की कोशिश में जुटा है। ताकि हर हाल में मतदान प्रतिशत को बढ़ाया जा सके। बात अगर 2022 में हुए विधानसभा चुनाव के मतदाता आंकड़ों की करें तो सितारगंज जो कि नैनीताल-ऊधम सिंह नगर लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा है। वहां कुमाऊं में सर्वाधिक मतदान हुआ था। जबकि सल्ट विधानसभा जो कि अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ क्षेत्र में शामिल है। तमाम कोशिशों के बावजूद आधे वोटर भी बूथ तक नहीं पहुंच सके थे। सिर्फ 45.92 प्रतिशत मत ही पड़े थे।

19 अप्रैल को राज्य की पांचों लोकसभा सीट के लिए मतदान होगा। निर्वाचन आयोग हर वर्ग के वोटरों को साधने में जुटा है। दिव्यांग-बुजुर्ग, युवा व महिला वोटरों पर खासा फोकस है। स्कूली बच्चों के जरिये उनके अभिभावकों को जागरूक किया जा रहा है। ताकि वो हर हाल में मतदान के दिन बूथ पर पहुंचे। वहीं, कुमाऊं के छह जिलों की पिछले विधानसभा चुनाव की स्थिति को देखे तो ऊधम सिंह नगर में 72.27 प्रतिशत लोगों ने लोकतंत्र के महापर्व में हिस्सा लिया था। जबकि छह विधानसभा वाले अल्मोड़ा में इसके मुकाबले साढे 18 प्रतिशत कम मतदान हुआ। यानी अल्मोड़ा में निर्वाचन आयोग को ज्यादा मेहनत की जरूरत पड़ेगी।

मतदान में शीर्ष पांच विधानसभा:

  • सितारगंज: 78.64 प्रतिशत
  • खटीमा: 76.63 प्रतिशत
  • गदरपुर: 75.64 प्रतिशत
  • जसपुर: 74.39 प्रतिशत
  • लालकुआं: 72.56 प्रतिशत

मतदान में पिछड़ी तीन विधानसभा

  • सल्ट: 45.92 प्रतिशत
  • रानीखेत: 51.80 प्रतिशत
  • द्वाराहाट: 52.72

कुमाऊं में जिलों की स्थिति:

  • ऊधम सिंह नगर में 72.27 प्रतिशत
  • नैनीताल में 66.35 प्रतिशत
  • बागेश्वर में 63 प्रतिशत
  • चंपावत में 62.66 प्रतिशत
  • अल्मोड़ा में 53.71 प्रतिशत
  • पिथौरागढ़ में 60.88 प्रतिशत

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